गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

ए मेरे बच्चे ,तुमने नहीं देखा


ए मेरे बच्चे ,तुमने नहीं देखा......


ए मेरे बच्चे ,तुमने नहीं देखा 
तारो भरे आसमान  को देखते हुए  छत पर सोना 
केसरिया सुबह की किरनो  से नींद का खुलना 
वो चिड़ियों का मधुर कलरव और उनका दाना चुगना
फूलों और कलियों को मुस्काते और ओस में नहाते देखना   ....

ए मेरे बच्चे ,तुमने नहीं देखा 
उन्मुक्त होकर बाग-बगीचों खेत - खलिहानों में घंटो खेलना 
कभी घर घर खेलना तो कभी गुड्डे -गुड़ियों का ब्याह रचाना
पापा की उंगली पकड़ कर मेले में ख़ुशी ख़ुशी जाना 
और ऊँचे से झूले में बैठ कर जोर जोर से चिल्लाना ....

ए मेरे बच्चे ,तुमने नहीं देखा 
वो स्कूल का तनाव रहित माहोल 
जहाँ हँसी-खुशी गुजरे हमारे बचपन के पल 
प्रेरणा दाई वे शिक्षक -शिक्षिकाए और उनका प्यार भरा दुलार 
पढाई संग खेलकूद और पक्की दोस्ती की भरमार
घर लौटने पर माँ का दरवाजे पर खड़ा रहना 
आते ही बस्ता फेक कर खेलने को भाग निकलना ...

ए मेरे बच्चे ,तुमने नहीं देखा
ज़िन्दगी की झंकार को गीत में घुलते हुए 
मिटटी की खुशबू को मन तक पहुचते हुए 
अपनेपन और विश्वास को रिश्तों में पनपते हुए
बारिश के पानी में कागज़ की नावों को बहते हुए 
काश, तुम्हे मैं दे पाऊ वे खूबसूरत सुहाने क्षण 
जिससे खुल के जी सको तुम अपना मधुर सा बचपन ....