सोमवार, 29 दिसंबर 2008

तब और अब


मित्रो , यह कविता नहीं बल्कि मेरे विवाहपूर्व के अल्हड जीवन और वर्तमान के व्यस्त और जिम्मेदारियों से युक्त जीवन की पूरी इमानदारी के साथ की गई तुलना है , इसलिए ही मैंने इसका शीर्षक चुना है -तब और अब
(!!! सभी पाठको को नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !!!)


तब निरंतर जारी रहता ,हसने का क्रम

अब एक मुस्कराहट भी आ जाए , तो बड़ी बात है ।

तब हजारो रेसिपिया संजोते थे डॉयरियो में हम

अब एक व्यंजन भी बन जाए , तो बड़ी बात है ।

तब हजारो गीत गुनगुनाते थे हम

अब एक पंक्ति भी गा पाये ,तो बड़ी बात है ।

तब नित तारीफों की बरसात में भीगते थे हम

अब सराहना की एक बूँद भी पा जाए ,तो बड़ी बात है ।

तब दूसरो के बच्चों को सुनाया करते थे हजारो रोचक कहानिया हम ,

अब ख़ुद के बच्चों को एक कहानी भी सुना पाये , तो बड़ी बात है ।

तब एक जरा सी बात पर नदियाँ आसुओं की बहाया करते थे हम ,

अब हज़ार ग़मों में एक आंसू भी आ जाए , तो बड़ी बात है ।

तब एकदम निश्चिंत ,एकदम बेफिक्र थे हम ,

अब एक चिंता भी कम हो जाए ,तो बड़ी बात है ....