बुधवार, 5 नवंबर 2008

चाहतें



इस भागदौड भरी जिंदगी में पाना चाहती हु सुकून के कुछ पल
दिशाहीन उड़ानें भरते
मन के पंछी की रोकना चाहती हूं हलचल
किसी पेड़ के साए तले
तुम्हारे कंधे पर सर रखकर ढढना
चाहती हूं समस्याओं के हल
तुम्हारे साथ मिलकर
दिल के तारों को छेड़कर
गुनगुनाना चाहती हूं एक मीठी गजल
टिमटिमाते तारों को हाथ से छूकर
बनाना चाहती हूं उन्हें अपना आँचल
दूर किसी जंगल में विचरते हुए
प्रकृति माँ की गोद में बिताना चाहती हूं पल-पल।

मंगलवार, 4 नवंबर 2008

आज कल में डूब गया



क्या हुआ कि-
कुछ यादें ताजा हुई
नजरें कुछ ढूंढने लगी
दिल कुछ कहने लगा
और आज कल में डूब गया।
कौन याद आ गया ?
क्या हुआ कि -
आंखें कुछ नम हो गई
मन कहीं खोने लगा
स्मृति कोष हुए हरे-भरें
और आज कल में डूब गया।
कौन याद आ गया ?
क्या हुआ कि -
होंठों पर गीत पुराना आ गया।
मंजरियों की अलकें झूलने लगीं
मन पुरानी गलियों में घूमने लगा
और आज कल में डूब गया।
कौन याद आ गया ?