शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2008

मिलती है मंजिल उसे



















मिलतीहै मंजिल उसे,
जो कंटकों पर चल सकें,
करे कुछ ऐसा कि
ये दुनिया बदल सकें।
मिलती है मंजिल उसे
जो संघर्ष की धूप सह सकें
पार कर सकें गमों की डगर बिन सहारें
कठिनाईयों को पी सकें।
मिलती है मंजिल उसे
जो न हो असफलताओं से पराजित
लोगों की बातों से न हो विचलित
कुंदन सा तप सकें।







कवि तुम लिखो ऐसा गीत


कवि तुम लिखो ऐसा गीत
कवि तुम लिखो ऐसा गीत
विश्व में फैले भारत की कीर्ति
उकेर दो कुछ शब्द
देश की यश कीर्ति पर
पावन गंगा जमना पर
गांधी नेहरू सुभाष पर
अपने प्राणों से प्यारे वतन पर
अपनी गौरवमयी संस्कृति पर
देश के अमर शहीदों पर।
कवि तुम लिखो ऐसा गीत
जिससे बढे भाईचारा और प्रीत
मिट जाए द्वेष,क्षेत्रीयता और नफरत की भावना
हो सिर्फ राष्ट्रीयता, देशप्रेम और अखंडता की कामना
हिंदु मुस्लिम सिख ईसाई
मिलकर बजाए एकता की शहनाई।
कवि तुम लिखो ऐसा गीत
भूल न पाएं हम अपना गौरवशाली अतीत
युवाओं में फैले जागृति
होकर प्रेरित,करें वे उन्नति
उत्साह का उनमें संचार हो
जिम्मेदारियों का उन्हें एहसास हो
छंट जाए निराशा और अवसाद के बादल
खुशहाली छा जाए पल पल
कवि तुम लिखो ऐसा गीत
कवि तुम लिखो ऐसा गीत
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