रविवार, 17 अगस्त 2008

कब तक उपेक्षित रहेगी हमारी राजभाषा-राष्ट्रभाषा हिन्दी ?

1४ sitambar आने वाला है और सभी केंद्रीय संस्थानों में शुरू होने वाली है हिन्दी पखवाडा,हिन्दी सप्ताह या हिन्दी दिवस को मनाने की कवायद । इन दिनों सभी कार्यालयों में हिन्दी से जुड़े हुए विद्वानों की खोज होगी ,हिन्दी के समारोह आयोजित किए जायेंगे ,हिन्दी को प्रोत्साहित करने की बात होगी और फिर हलचल समाप्त और अगले साल तक के लिए शान्ति व्याप्त ।
सवाल यह उठता है कि क्या हिन्दी को वाकई इन पखवाड़ों-सप्ताहों की जरूरत है ? देखा जाए तो हिन्दी को वास्तव में इन पखवाड़ों-सप्ताहों दिवसों की जरूरत नही है, हमारी राजभाषा -राष्ट्रभाषा हिन्दी को जरूरत है तो शताब्दी की ,हम भारतीयों के संकल्प की ,और इस मामले में सरकार के दृढ होने की । ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है ,बस सरकार को हिन्दी को रोजगार और शिक्षा के सभी स्तरपर अनिवार्य रूप से जोड़ने की आवश्यकता है । भारत में जब अंग्रेजी लागू हुई तो क्या अंग्रेजो ने अंग्रेजी दिवस मनाये या अंग्रेजी में काम करने का निवेदन किया ? जबाब एकदम साफ़ है कि उन्होंने ऐसा कुछ ना करते हुए अंग्रजी को सीधे रोजगार से जोड़ दिया , अब जिनको नौकरी चाहिए उन्होंने एबी सी डी से शुरुआत करते हुए विदेशी भाषा भी सीखी और उसमे काम करने की आदत भी डाली । इस मामले में महाराष्ट्र सरकार के कदम तारीफ के लायक है । उन्होंने नौकरी के हर स्तर पर मराठी को उचित तरीके से लागू किया है ,चाहे कितना भी बड़ा तकनिकी या अभियांत्रिकी संसथान हो, वहा से आने वाले पत्र अनिवार्य रूप से मराठी में ही आते है , ऐसा केंद्रीय स्तर पर भी तो हिन्दी को अनिवार्य roop सेअपना कर kiya जा सकता है .

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