गुरुवार, 24 जुलाई 2008

पर्यावरण की सुरक्षा अपने अस्तित्व को बचाने के लिए


आज नही चेते तो कल स्थिती सुधार करने लायक भी नही होगी.जी हाँ मैं बात कर रही हूँ ,प्रकृति से छेड़छाड़ और उससे प्राप्त होने वाले नतीजो की. आज जहा महाराष्ट्र और देश के कुछ इलाकों में बारिश के मौसम में जितनी वर्षा होनी चाहिए थी उतनी नही हो पाई है ,वही बिहार और अन्य भागो में बढ़ कहर ढहा रही है । कही बिजली की कमी है तो कही मूलभूत सुविधाओं की । आज से दस बरस पहले क्या हमने कभी सोचा था की पानी भी खरीद कर पीना पड़ेगा और अगर यही हालत रहे तो कुछ बरसो में ओक्सिजन भी खरीद कर साँस लेना होगा । न केवल हमारे देश में बल्कि पूरे विश्व में सर्वत्र महंगाई और प्रदुषण व्याप्त हो चुका है . माना इन सब चीजो को सुधारना पूरी तरह से न सही ,लेकिन आंशिक तोर से तो हमारे हाथ में है .आज सरकारी प्रयासों से अधिक जरूरत है कि आम आदमी चेते और अपने स्तर पर प्रयास करे । निम्नाकित सुझावों को अपना कर कुछ हद तक हम सुधर कर सकते है .
१-अपने घर के आँगन को कच्चा रखे ताकि वर्षा जल अवशोषित हो। वर्षा जल को पाइप द्वारा जमीन में भिजवाए .
२-अधिक से अधिक पेड़ पोधे लगाये । बच्चों के जन्मदिन पर उनके हाथ से पोधे लगाये और गिफ्ट में पेड़ पोधे देने को प्रोत्साहित करें
3-कार्यालयओं में अधिकतर लोगो का नजरिया होता है कि बिजली पंखे कूलर चल रहे हो तो चलने दो , हमें बिल थोड़े ही भरना है ,लेकिन वे ये नही सोचते कि बिजली कि कमी भी तो हमारा देश झेल रहा है । अतः इस नजरिये को बदलने का प्रयास करे और ख़ुद पहल करें
४-अपने नगर की झीलों को ,जलाशयों को अशुद्ध होने से बचाए.उसमे विसर्जन सामग्री ,प्लास्टिक के पेक्केट आदि न डालें ।
५-अक्सर मैं देखती हूँ विशेषकर महानगरों में , गृहनिया सब्जी फलो के छिलके इत्यादी अन्य कचरे के साथ प्लास्टिक बैग में dआल कर फिकवा देती है जिससे कि इन्हे खाने वाले जानवर मर जातें हैं । esliye ऐसा न करे सब्जी फलो के छिलके इत्यादी अलग करके जानवरों
को खाने के लिए डाले । हो सके तो गर्मी के दिनों में पक्षियों के लिए खिड़की में पानी का कटोरा भर कर रखे तथा जानवरों के लिए घर के बहार पानी का मटका इत्यादी रखे ।
६ -आसपास के छोटे मोटे कामो के लिए या तो पैदल चलें या साईकिल का उपयोग करे
इससे पेट्रोल कि बचत के साथ साथ कुछ व्ययाम भी होगा
७-हर कालोनी में सार्वजनिक उद्यानों की स्थापना करे तथा वह की सफाई तथा पोधों को जल सिंचन की और ध्यान दे । अधिक से अधिक नीम और तुलसी के पोधे लगायें। ये प्रदुषण कम करने में सहायक है.
मेरा मानना है कि इतना तो हर कोई आसानी से कर सकता है ।
शेष फिर कभी ।



5 टिप्‍पणियां:

Amit K Sagar ने कहा…

उम्दा उम्दा. बहुत खूब. आपने इक बहुत ही ज़रूरी मुद्दे की बाबत लिखा है. इसमें कोई शक नहीं की इक रोज़ प्रकृति इस तरह से बिखरे की मानुष समाज पर भरी पड़े...वैसे इसके प्रमाण देश-विदेश में अक्सर देखे-सुने जाते भी हैं. लोगों को चाहिए की वो पर्यावरण-प्रकृति की ओर भी अपना ध्यान करें. शुक्रिया.
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साथ ही आपको उल्टा तीर पर जारी बहस में आपके अमूल्य विचारों के लिए भी कहूँगा, व् आमंत्रित करता हूँ, "उल्टा तीर" मंच की ओर से जश्ने-आज़ादी-२००८ की पत्रिका में अपने विचारों के साथ शिरकत करने हेतु. शुक्रिया
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यहाँ पधारे;
उल्टा तीर।

शोभा ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है। स्वागत है।

सागर नाहर ने कहा…

स्वाती जी
अब लगता नहीं कि इन छोटे छोते उपायों से कुछ सुधार की गुंजाईश है! हमने अपनी कब्र अपने ही हाथों से खोदी है, अंजाम तो हमें और आने वाली पीढ़ीयों को भुगतना ही होगा।
नहाने धोने के लिये पानी तो हमें यहाँ हैदराबाद में आज भी खरीदना पड़ ही रहा है। आने वाले कल की सोचता हूँ तो सिहर उठता हूँ।
मेरे मकान मालिक जोशुआ साहब ने ३० साल पहले मकान बनाते समय वर्शाजल को जमीन में भेजने की व्यवस्था करवाई, काश ऐसा सब कर पाते; पर जोशुआ साहब भी क्या करे, वर्षा होने के कोई आसार नहीं दिख रहे ।
आपने बहुत बढ़िया विषय चुना, बधाई स्वीकार करें। हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है। हिन्दी में आप बढ़िया लिखेंगी और खूब लिखेंगी; उम्मीद करता हूँ।
अगर संभव हो सके तो वर्ड वेरिफिकेशन हटा देवें यह टिप्प्णी करते समय बड़ा परेशान करता है।

॥दस्तक॥,गीतों की महफिल,तकनीकी दस्तक

शैलेश भारतवासी ने कहा…

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pallavi trivedi ने कहा…

bahut achche sujhav hain aapke...yadi sabhi log in par amal karne lage to bahut had tak paryavaran ko bachane mein safalta mil jayegi.